• महिषासुर से संबंधित परंपराओं और आंदोलन के निहितार्थ

    Author(s):
    Pramod Ranjan (see profile)
    Date:
    2017
    Group(s):
    Cultural Studies, Feminist Humanities, Gender Studies, Public Humanities, Religious Studies
    Subject(s):
    Indigenous peoples--Social life and customs, Blasphemy, Culture conflict, Counterculture, Indian mythology, Durgā-pūjā (Hindu festival), Mahiṣāsuramardinī (Hindu deity), Hinduism, Indigenous peoples, Dalits
    Item Type:
    Book chapter
    Tag(s):
    महिषासुर शहादत दिवस, महिषासुर स्मृति दिवस, राजा महिषासुर, दुर्गा पूजा, महिषासुर मिथक व परंपराएं, महिषासुर एक जननायक
    Permanent URL:
    https://doi.org/10.17613/c1px-2233
    Abstract:
    महिषासुर आंदोलन के इस कदर अचानक फैल जाने का एक बड़ा कारण था कि बहुजन समाज में इन परंपराओं की जड़ें बहुत गहरी रही हैं और इनका प्रसार उसके अवचेतन तक रहा है। इन समुदायों से आने वाले फुले, आंबेडकर, पेरियार समेत सभी चिंतकों ने असुर-संस्कृति की न सिर्फ विस्तृत गवेषणा की है, बल्कि अगर आप ध्यान से देखें तो पाएंगे कि यही उनकी वैचारिकी का प्रस्थान बिंदु भी रहा है और उनके वांग्मय में अच्छी-खासी जगह घेरता है। जेएनयू में 2047 में आयोजित महिषासुर शहादत दिवस ने तो सिर्फ खाद का काम किया, खेतों में बीज पहले से थे और नमी काफी समय से तैयार हो रही थी। इस विमर्श के सतह पर आने के बाद लोग अपनी कल्पनाशीलता का प्रयोग कर अपने लोक- जीवन का उससे मिलान कर रहे हैं और इसे अपने करीब पा रहे हैं
    Notes:
    यह प्रमोद रंजन द्वारा संपादित "महिषासुर: मिथक व परंपराएं" पुस्तक की भूमिका है। पुस्तक का पहला संस्करण 2007 में प्रकाशित हुआ था। इस पुस्तक के बारे में यहां देख सकते हैं:https://doi.org/10.17613/hz5d-e827 इस विषय पर केंद्रित एक अन्य पुस्तक "महिषासुर: एक जननायक" का हिंदी संस्करण यहां देख सकते हैं: https://hal.science/hal-03749960 "महिषासुर: एक जननायक" का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित है। उसे यहां देखा जा सकता है: https://hal.science/hal-03834426v1
    Metadata:
    Published as:
    Book chapter    
    Status:
    Published
    Last Updated:
    4 months ago
    License:
    Attribution-NonCommercial

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