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टिप्पणियों के खिलाफ एक लंबी टिप्पणी
- Author(s):
- Pramod Ranjan (see profile)
- Date:
- 2007
- Group(s):
- Literary Journalism, Literary theory
- Subject(s):
- Hindi prose literature, Criticism, Periodical editors
- Item Type:
- Article
- Tag(s):
- हिंदी आलोचना, जादूई यथार्थवाद, अति यथार्थवाद, आंद्रे बेतां, मिखाइल बाख्तिन, जॉक देरिदा, राजेंद्र यादव, प्रेमकुमार मणि
- Permanent URL:
- https://doi.org/10.17613/5dm6-ak52
- Abstract:
- यह एक संस्मरणात्मक ललित निबंध है। इसमें बिहार के कथाकार व राजनेता जाबिर हुसेन, रामधारी सिंह दिवाकर और प्रमोद रंजन के बीच साहित्यिक रचना की स्वायत्तता को लेकर हुए विमर्श का प्रसंग है। लेखक का तर्क है किसी साहित्यिक रचना में उसकी पृष्ठभूमि के उल्लेख से उसकी स्वायत्तता भंग होती है और वह रचना के पूर्ण आस्वाद में बाधक होती है।
- Notes:
- यह आलेख पटना से प्रकाशित मासिक मंडल विचार के संयुक्तांक (नवंबर, 2006-जनवरी, 2007) में प्रकाशित हुआ था।
- Metadata:
- xml
- Published as:
- Journal article Show details
- Pub. Date:
- 2007
- Journal:
- मंडल विचार
- Page Range:
- 23 - 25
- Status:
- Published
- Last Updated:
- 8 months ago
- License:
- Attribution-NonCommercial
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