• मीडिया: विश्ववास का धंधा

    Author(s):
    Pramod Ranjan (see profile)
    Date:
    2009
    Group(s):
    Communication Studies, Sociology
    Subject(s):
    Journalism--Objectivity, Indian press, Journalistic ethics, Minorities in journalism, Caste, Race in mass media, Dalits, Mass media--Economic aspects, Mass media--Political aspects, Newspapers
    Item Type:
    Article
    Tag(s):
    Prabhash joshi, Jansatta, Hindi newspaaper, Caste in media, casteism in journalism, Paid News, election and media, Hindi media
    Permanent URL:
    https://doi.org/10.17613/07bd-cq52
    Abstract:
    प्रमोद रंजन का 'विश्वास का धंधा' शीर्षक यह लेख हिंदी दैनिक जनसत्ता के 30 अगस्त, 2009 के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस लेख के प्रकाशन के बाद हिंदी पत्रकारिता में जातिवाद के सवाल पर बड़ा विवाद हुआ था। इससे संबंधित घटनाक्रम इस प्रकार था: प्रमोद रंजन का उपरोक्त लेख उनकी पुस्तिका 'मीडिया में हिस्सेदारी' में संकलित भी था। उस पुस्तिका की भी बहुत चर्चा उन दिनों हुई थी। उस समय पर हिंदी पत्रकारिता में जाति के सवाल पर बुद्धिजीवियों के बीच चर्चा नहीं होती थी। प्रभाष जोशी उन दिनों पेड न्यूज के विरोध में अभियान चला रहे थे और जनसत्ता में नियमित इस संबंध में लिख रहे थे। उनका तर्क था कि पैसा देकर खबर छपवाने से पत्रकारिता की मर्यादा भंग हो रही है। प्रभाष जोशी जनसत्ता के संस्थापक-संपादक थे, लेकिन जिस समय प्रमोद रंजन का लेख 'विश्वास का धंधा' प्रकाशित हुआ था, उस समय जनसत्ता के संपादक ओम थानवी थे। प्रमेाद रंजन ने अपने लेख इस लेख ('विश्वास का धंधा') में प्रभाष जोशी के अभियान की सराहना की थी, लेकिन सवाल उठाया था कि भारतीय अखबारों के न्यूज रुमों पर ऊंची जातियों का कब्जा है और वरिष्ठ पत्रकार चुनाव के समय जाति-धर्म और मित्र-धर्म का निर्वाह करते हैं, जिससे दलित-पिछड़े तबकों से आने वाले राजनेताओं के साथ न्याय नहीं होता। प्रमोद रंजन के इस लेख से प्रभाष जोशी बुरी तरह भड़क गए और उन्होंने इसका उत्तर जनसत्ता में अपने साप्ताहिक कॉलम ‘कागद कारे’ में 'काले धंघे के रक्षक' शीर्षक लेख लिखकर दिया। अपने लेख में प्रभाष जोशी ने मीडिया में जातिवाद के सवाल को उठाने के लिए प्रमोद रंजन के विरुद्ध कटु शब्दों का इस्तेमाल किया। प्रभाष जोशी पर पहले से ही जातिवाद का आरोप लग रहा था। मीडिया में जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाने पर भड़क उठने के कारण उनकी सोच और स्पष्टता से सामने आ गई, जिस पर तत्कालीन हिंदी ब्लॉगों पर महीनों बहस चलती रही। प्रमोद रंजन ने उनके लेख का उत्तर 'महज एक बच्चे की ताली पर' शीर्षक लेख लिख कर दिया, जो हाशिया नामक ब्लॉग पर सितंबर, 2009 में प्रकाशित हुआ था। हिंदी पत्रकारिता में जाति के सवाल के इतिहास को समझने के इच्छुक शोधार्थियों को यह पूरा विवाद देखना चाहिए।
    Notes:
    इससे संबंधित अन्य सामाग्री यहां देखें: 1. प्रभाष जोशी का लेख काले धंधे के रक्षक : https://doi.org/10.5281/zenodo.7387770 2. प्रमोद रंजन का लेख 'महज एक बच्चे की ताली पर' : https://hcommons.org/deposits/item/hc:49883/ 3. प्रमोद रंजन की पुस्तिका 'मीडिया में हिस्सेदारी' :https://doi.org/10.17613/7bf4-3p41
    Metadata:
    Published as:
    Newspaper article    
    Status:
    Published
    Last Updated:
    5 months ago
    License:
    Attribution-NonCommercial

    Downloads

    Item Name: pdf media-is-the-business-of-belief_share-of-dalit-obc-adivasi-in-media_vishwas-ka-dhandha_media-me-hissedari.pdf
      Download View in browser
    Activity: Downloads: 12