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हिंदी की साहित्यिक-वैचारिक पत्रिकाएं: आंधी-तूफान में बजती डुगडुगी
- Author(s):
- Saroj Kumar
- Contributor(s):
- Pramod Ranjan (see profile)
- Date:
- 2015
- Group(s):
- Literary Journalism
- Subject(s):
- Little magazines, Periodical editors, Hindi literature, Book reviewing
- Item Type:
- Magazine section
- Tag(s):
- Hindi literature--Periodicals, hindi magazine, hindi ki patrikayen, Forward Press, Pahal, Naya Gynoday, Pakhi, Parikatha, Vagarth, Kathadesh, Streekal, Adivasi Sahitya, Tdbhav
- Permanent URL:
- https://doi.org/10.17613/tat1-t954
- Abstract:
- इंडिया टुडे के 24 जून 2015 अंक में प्रकाशित इस रिपोर्ट में हिंदी की प्रमुख साहित्यिक वैचारिक पत्रिकाओं के संघर्ष को बताया गया है। रिपोर्ट में प्रकाशित पत्रिकाओं के संपादकों के वक्तव्य: "हंस वंचितों की पत्रिका है और धार्मिक विचारों का समर्थन नहीं करती है। हम राजेंद्र जी के विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं"- संजय सहाय, संपादक, हंस। "सभी केंद्रीय साहित्यिक पत्रिकाएं मिलकर साझी योजना बनाएं तो उनके विमर्शों को केंद्रीयता मिल सकती है"-लीलाधर मंडलोई, संपादक, नया ज्ञानोदय। "अभी वेचारिक उर्जा की कमी देने को मिल रही है। हम नए रचानाकारों से गहन संपर्क कर रहे हैं"- अखिलेश, संपादक, तद्भव। "हमारा लक्ष्य उत्तर भारत के वंचित तबकों की आवाज बनना है, जिन्हें मुख्यधारा ने नजरअंदाज किया है"-प्रमोद रंजन, संपादक ,फारवर्ड प्रेस। "दिल्ली से निकलने वाली पत्रिकाओं में आपसी सौहार्द और सहभागिता नजर नहीं आती"- शंकर, संपादक, परिकथा। "संवेदना, संबंध और विचार को आज सबसे अधिक खतरा है। पत्रिकाएं इन्हें महफूज रखने के लिए सक्रिय हैं"- प्रेम भारद्वाज, संपादक, पाखी।
- Metadata:
- xml
- Published as:
- Magazine section Show details
- Pub. URL:
- https://www.aajtak.in/literature/story/hindi-literary-magazines-are-facing-the-challenges-of-present-301886-2015-06-15
- Pub. Date:
- June 24, 2015
- Magazine:
- इंडिया टुडे
- Section:
- 29 (32)
- Page Range:
- 68 - 71
- Status:
- Published
- Last Updated:
- 1 year ago
- License:
- Attribution