• हिंदी साहित्येतिहास का बहुजन पक्ष

    Author(s):
    Pramod Ranjan (see profile)
    Date:
    2022
    Group(s):
    Literary Journalism, Literary theory
    Subject(s):
    Dalits, Literature, Hindi fiction, Hindi literature, Indian literature
    Item Type:
    Article
    Tag(s):
    दलित, बहुजन, आदिवासी, दलित साहित्य, आदिवासी साहित्य, घूमंतु जातियां, बहुजन साहित्य, आम्बेडकर, जोतिबा फुले
    Permanent URL:
    https://doi.org/10.17613/6gb0-mf27
    Abstract:
    इस लेख में बहुजन साहित्य की अवधारणा की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। बहुजन साहित्य की अवधारणा का पैमाना लेखक का कुल लेखकीय-वैचारिक अवदान है। इसलिए द्विज समुदाय से आने वाले ऐसे लेखकों के लिए भी इसमें स्थान है, जिनकी दृढ पक्षधरता इन वंचित तबकों के प्रति हो। जैसा कि हम फारवर्ड प्रेस में कहते आए हैं कि यह अवधारणा उस विशाल छतरी की तरह है, जिसके अंतर्गत मौजूदा दलित साहित्य भी है, आदिवासी साहित्य भी और स्त्री साहित्य भी; लेकिन जरूरत इस बात की है कि इसके साथ ही ओबीसी, पसमांदा और घूमंतू जातियों के साहित्य भी स्वतंत्र रूप सामने आएं तथा उनकी विशिष्टताओं के साथ-साथ उनके सांझे मूल्यों, सौंदर्य विधानों का समेकित आलोचनात्मक मूल्यांकन भी हो। साहित्य की यही बहुजन अवधारणा अभिजन साहित्य को हाशियाकृत करने में सक्षम होगी।
    Notes:
    यह लेख फॉरवर्ड प्रेस में प्रकाशित हुआ था। यह पत्रिका द्विभाषी (अंग्रेजी और हिंदी) थी। मूल लेख हिंदी में लिखा गया था, जिसका अंग्रेजी में अनुवाद अमरीश हार्डेनिया ने किया है। संलग्न लेख दोनों भाषाओं में है।
    Metadata:
    Status:
    Published
    Last Updated:
    1 year ago
    License:
    Attribution

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